Friday, July 3, 2009

गोपी उद्धव संवाद एक कवि के द्वारा


ये भी कोई कायदा है वायदा पूरा करे, भेजे एक दूत जो की दुश्मनों सा लगता
ज्ञान की तो बात करे तीन हाथ आगे बढ़, प्रेम का वो नाम सुन पीछे पीछे भगता
ब्रज के निकुंज कुञ्ज गली रिद्धियों के बीच कान्हप्रेम कान्हप्रेम कान्हप्रेम पगता
ओ जान के अनाथ नाथ आपका परम मित्र भोली भाली गोपियों को खुलेआम ठगता

ज्ञान की महानता बखानते हैं ज्ञानी लोग गोपियाँ तो प्रेम की व्यथा कथा सुनाएंगी
ज्ञान के विकास का प्रयास आप कीजियेगा गोपियां तो स्नेह सिक्त दीप ही जलाएँगी
ज्ञान के मंजीरे खड़ताल और मृदंग बजे, गोपियाँ तो प्रेम की ही बांसुरी बजायेंगी
ज्ञान के तालाब में नहालाइएगा रुकमनी को गोपियाँ तो प्रेम की नदी में डूब जाएँगी

ओ ज्ञान के पुजारी तेरी मति गयी मारी, मूढ़ जानता नही है तू महत्व अश्रुपान का
ज्ञान है दुकान प्रेम कांच का मकान और, गोपियों का मान बड़ी आन बाण शान का
गोकुल से मथुरा की दूरी सिर्फ़ पाँच कोस, जानते हैं फिर भी ये प्रश्न स्वाभिमान का
होंगे सम्राट वो विराट ठाठ बाट पर गोपियों का प्रेम भाव पात्र कहाँ मानता

किसकी इजाजत से घुसा बरन मंडल में आओ सखी इसका कमंडल झपट लें
किसने बुलाया और किसने बिठाया इसे ऐसी महामारी से तनिक दूर हट लें
आज ज्ञान भावना में युद्ध घमासान होगा, चलो प्रेम पुस्तिका के पृष्ठों को पलट लें
राम से सुलट लेंगे श्याम से उलट लेंगे, पहले इस धूर्त अवधूत से निपट लें

1 comment:

  1. Excellent post!!
    I heard this long back in late eighties during one of the Kavi sammelan.it was written by some lady with surname Chauhan. Can you please let me know who was she?

    ReplyDelete